Thursday, September 29, 2011

Kuchh Alfaaz. Rooh ki aawaz..

नन्हे कदम लेकर आये थे हम, किलकारियों का शोर लेकर आये थे हम,

अनजानापन, मासूमियत, और खुदा का नूर लेकर आये थे हम |

देखा यहाँ तो हर पल हे बदलता मौसम ,बांटी थोड़ी खुशियाँ , पिए थोड़े गम

ये तो हे ज़रूर किसीकी दुवाओं का दम , वीरानियों के मंज़र में मिले आप और हम |

मलाल तो बस इसी बात का रह गया , की जी भरकर आपको बतिया भी न सके हम ,

ये सैलाब जो उमडा था रूह में , उसे दिल-ओ-जान से बहा भी न सके हम |

यू तो अपने सीने में लिए फिरते हे प्यार का दरिया ,

बावजूद इसके आपकी की प्यास भी बुझा न सके हम |

प्यास के तो किया कहने हे , उसकी तो अपनी ही एक कशिश हे ,

आपके चले जाने की , अब हमे न कोई रंजिश हे ,

लेकिन मर-जायेंगे मिट-जायेंगे अगर आपकी यादे-ए-आशियाँ में एक घरौंदा भी बना न सके हम |

अब तो हुवा हे ये मंज़र , बड़े हो गए हे पैर ,

और छोटी हो गई हे चद्दर ,

या खुदा यकीं नहीं आता ,

नन्हे कदम लेकर आये थे हम, किलकारियों का शोर लेकर आये थे हम ||


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