नन्हे कदम लेकर आये थे हम, किलकारियों का शोर लेकर आये थे हम,
अनजानापन, मासूमियत, और खुदा का नूर लेकर आये थे हम |
देखा यहाँ तो हर पल हे बदलता मौसम ,बांटी थोड़ी खुशियाँ , पिए थोड़े गम
ये तो हे ज़रूर किसीकी दुवाओं का दम , वीरानियों के मंज़र में मिले आप और हम |
मलाल तो बस इसी बात का रह गया , की जी भरकर आपको बतिया भी न सके हम ,
ये सैलाब जो उमडा था रूह में , उसे दिल-ओ-जान से बहा भी न सके हम |
यू तो अपने सीने में लिए फिरते हे प्यार का दरिया ,
बावजूद इसके आपकी की प्यास भी बुझा न सके हम |
प्यास के तो किया कहने हे , उसकी तो अपनी ही एक कशिश हे ,
आपके चले जाने की , अब हमे न कोई रंजिश हे ,
लेकिन मर-जायेंगे मिट-जायेंगे अगर आपकी यादे-ए-आशियाँ में एक घरौंदा भी बना न सके हम |
अब तो हुवा हे ये मंज़र , बड़े हो गए हे पैर ,
और छोटी हो गई हे चद्दर ,
या खुदा यकीं नहीं आता ,
नन्हे कदम लेकर आये थे हम, किलकारियों का शोर लेकर आये थे हम ||